बेचारे जज को क्या मालूम था कि होली के दिन उनके आवास में लगी आग उनके लिये मुसीबत का पहाड़ बन जाएगी. सोच रहे होंगे कि कितना अच्छा रहता जो सब कुछ जल कर राख हो गया होता. पर जज का आवास और उसमें लगी आग बुझाने के लिये दमकल कर्मी तुरंत पहुँच गये. आग बुझाने के दौरान उन्होने देखा कि नोटो का अम्बार लगा हुआ है. उन लोगों ने आग तो बुझा दी पर अब जो आग लगी है उसे बुझाने में जजों के कॉलेजियम के सामने समस्या खड़ी हो गई है.
रहीम का एक दोहा है -
खैर खून खाँसी खुशी बैर प्रीत मधुपान
रहिमन दाबे ना दबे जाने सकल जहान.
इस दोहा में रहीम कहते हैं कि सारी दुनिया जानती है कि खैर (कत्थे का दाग़), ख़ून, खाँसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा; ये चीज़ें ना तो दबाने से दबती हैं और ना छिपाने से छिपती हैं. जज साहब के आवास पर लगी आग ने इस सच्चाई को रेखांकित कर दिया है.
दुनिया में भारत एक मात्र देश है जहाँ के जज खुद ही जज नियुक्त करते हैं, खुद ही उनकी सेवा शर्ते निर्धारित करते हैं, खुद ही पद स्थापन और स्थानान्तरण के खेल भी खेलते है. कहने के लिये तो हर नियुक्ति, पद स्थापन, स्थानान्तरण वगैरह के लिये देश के राष्ट्रपति की स्वीकृति जरुरी होती है पर यह एक नंगी सचाई है कि राष्ट्रपति भवन इन मामलों में सिर्फ विलम्ब कर सकता है, पुनर्विचार के लिये भेज सकता है, पर अन्तोगत्वा होता वही है जो इस देश के स्वंयभू जज चाहते हैं. उनके उपर न तो नैतिकता का कोई बन्धन होता है, न संविधान सम्मत होने की मजबूरी. हमारे देश के जज जो चाहें तय कर सकते हैं. संविधान में जो लिखा है उसकी मनमाफिक व्याख्या कर सकते हैं. जो नहीं लिखा है उसे भी संविधान की मूलभूत संरचना बता सकते हैं. वे चाहें जिस पर सवाल उठा लें पर उन पर सवाल उठाने का अधिकार या स्वतंत्रता किसी को नहीं है.
जब जज के आवास में इतनी बड़ी धनराशि मिली तो स्वाभाविक न्याय कहता है कि वह जज इस नगदी का स्रोत बताए, इसे नगदी के रूप में रखने का कारण बताये. जरा भी लाज हया होती तो ऐसा जज पहले त्यागपत्र दे देता और फिर न्याय पाने का विधि सम्मत तरीका तलाशता. आखिर कॉलेजियम में तो उसी के भाई बन्धु हैं. कोई न कोई तरीका निकाल ही लेंगे. पर किसी जज से ऐसी नैतिकता की उम्मीद रखना व्यर्थ है.
हाँ पर अब विधायिका अपने छीने जा चुके अधिकारों की पुनर्प्राप्ति के लिये प्रयास करने का बहाना पा गयी है. जजों से भी उन्हीं कानूनों के तहत निपटा जाना चाहिये जिन कानूनों के तहत वे आम नागरिकों को निपटाते रहते है. पर अपने देश की न्यायापालिका से ऐसे न्याय की अपेक्षा रखना भी उनके प्रति अन्याय होगा.
Friday, March 21, 2025
खैर खून खाँसी खुशी बैर प्रीत मधुपान
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