पता नहीं यह सच है या नहीं मगर कम से कम आदमी की नस्ल में ऐसा नहीं होता. खास कर नेता और पत्रकार बिरादरी में. इन बिरादरीओं में बस मौका मिलना चाहिए और फिर एक दूसरे का माँस नोचने में इन्हें कोई दिक्कत नहीं होती.
आजकल पत्रकार बिरादरी बहुत उत्साह में है. उसे अपनी बिरादरी की दो लाशे मिल गई हैं और वे जम कर उसका भोज खाने में लग गए हैं. भूल गए हैं कि अगर मीडीया का समूह बना रहा तो सरकार को बहुत दिक्कत होती है उससे निबटने में. कोई ना कोई कहीं ना कहीं नेशनल हेराल्ड जैसे मुद्दों को छाप ही देता है दिखा ही देता है. सो अगर इनसे एक एक कर निबटा जाए तो सरकार एक दिन पूरी मीडिया को अपना दास बना ही लेगी. पुराने लोगों को याद होगा कि किस तरह आपातकाल के दौरान जिनको झुकने के लिए कहा गया था वे रेंगने लगे थे. और मीडिया कि तोड़ने के लिए सबसे आसान तरीका है एक को दूसरे से लड़ा देना.
आज वही हो रहा है. अपनी सिद्धान्तप्रियता जताने के लिए लोग एक से बढ़ कर एक तरीके से उन दोनो पत्रकारों को दोषी ठहराने में लगे हुए हैं. इस बीच किसी को याद नहीं कि इस पूरे प्रकरण में एक पक्ष और है. उसी पक्ष का घोटाला दिखाने या न दिखाने के लिए यह सारा प्रकरण बना. मगर लगभग पूरी की पूरी पत्रकार बिरादरी भिड़ गई है सिर्फ और सिर्फ एक पक्ष को दोषी दिखलाने में. क्या इससे यह नहीं लगता कि चाटुकारों की पूरी फौज बन गई है मीडिया में. जो राबर्ट और राहुल सोनिया पर लगे आरोपों की एकाध झलक दिखा कर लीपापोती कर लेते हैं मगर गडकरी के खिलाफ रोजाना माहौल बनाए रखते हैं.
पत्रकार अपने भीतर जितनी नंगई पाले हुए हो मगर अपनी बकतूतो में वो उसे बाहर नहीं आने देता या नहीं चाहता. यह काम उसके विरोधियों पर रह जाता है. आजु पूरी कोशिश हो रही है कि इस मसले को मीडिया बनाम सरकार का न बनने दिया जाए और इसे दो तथाकथित ब्लैकमेलर पत्रकारों का सीमित मसला बना कर रख दिया जाय.
दुर्भाग्य से यह कोशिश सफल भी होती दिख रही है.
आजकल पत्रकार बिरादरी बहुत उत्साह में है. उसे अपनी बिरादरी की दो लाशे मिल गई हैं और वे जम कर उसका भोज खाने में लग गए हैं. भूल गए हैं कि अगर मीडीया का समूह बना रहा तो सरकार को बहुत दिक्कत होती है उससे निबटने में. कोई ना कोई कहीं ना कहीं नेशनल हेराल्ड जैसे मुद्दों को छाप ही देता है दिखा ही देता है. सो अगर इनसे एक एक कर निबटा जाए तो सरकार एक दिन पूरी मीडिया को अपना दास बना ही लेगी. पुराने लोगों को याद होगा कि किस तरह आपातकाल के दौरान जिनको झुकने के लिए कहा गया था वे रेंगने लगे थे. और मीडिया कि तोड़ने के लिए सबसे आसान तरीका है एक को दूसरे से लड़ा देना.
आज वही हो रहा है. अपनी सिद्धान्तप्रियता जताने के लिए लोग एक से बढ़ कर एक तरीके से उन दोनो पत्रकारों को दोषी ठहराने में लगे हुए हैं. इस बीच किसी को याद नहीं कि इस पूरे प्रकरण में एक पक्ष और है. उसी पक्ष का घोटाला दिखाने या न दिखाने के लिए यह सारा प्रकरण बना. मगर लगभग पूरी की पूरी पत्रकार बिरादरी भिड़ गई है सिर्फ और सिर्फ एक पक्ष को दोषी दिखलाने में. क्या इससे यह नहीं लगता कि चाटुकारों की पूरी फौज बन गई है मीडिया में. जो राबर्ट और राहुल सोनिया पर लगे आरोपों की एकाध झलक दिखा कर लीपापोती कर लेते हैं मगर गडकरी के खिलाफ रोजाना माहौल बनाए रखते हैं.
पत्रकार अपने भीतर जितनी नंगई पाले हुए हो मगर अपनी बकतूतो में वो उसे बाहर नहीं आने देता या नहीं चाहता. यह काम उसके विरोधियों पर रह जाता है. आजु पूरी कोशिश हो रही है कि इस मसले को मीडिया बनाम सरकार का न बनने दिया जाए और इसे दो तथाकथित ब्लैकमेलर पत्रकारों का सीमित मसला बना कर रख दिया जाय.
दुर्भाग्य से यह कोशिश सफल भी होती दिख रही है.