जाति गणना और राहुलों की समस्या
जब पूरा देश ही नहीं पूरा विश्व जानना चाहता था कि पहलगाम हमले के बाद भारत सरकार की प्रतिक्रिया क्या होगी, कब होगी, कैसी होगी तभी कौतुक प्रिय मोदी सरकार ने घोषणा कर दी कि अगली जनगणना में जाति की गणना भी कराई जायेगी. यह समाचार किसी सर्जिकल स्ट्राइक से कम घातक नहीं रहा. अलग बात है कि घात किस पर हुआ.
मैँ इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता कि देश में किस जनगणना तक जाति की गणना होती थी, कब बन्द कर दी गई, या आजाद भारत में जाति गणना क्यों बन्द कर दी गई थी. क्योंकि मैं बहुत साधारण आदमी हूं जिसका ज्ञान बहुत कम है. मैं तो बस इस चिन्ता में हूं कि जाति की परिभाषा क्या होती है ? जाति पितृमूल से आती है या मातृमूल से ? अलग अलग जाति के माँ-बाप से उत्पन्न संतानों की जाति कौन सी होगी ? पिता वाली या माता वाली ? और एक बार यह तय हो जात तो क्या उसको हर पीढ़ी अपने सुविधानुसार बदल सकती है ? धर्म परिवर्तन तो संभव है पर क्या जाति परिवर्तन भी हो सकता है ? कोई भी अपने को हिन्दू कह सकता है और उसे मान लिया जायेगा क्योंकि हिन्दू होने की कोई शर्त नहीं होती सिवाय उस व्यक्ति की स्वीकृति के. आप किसी भी देवी-देवता को मान सकते हैँ या किसी को भी नहीं. आप आस्तिक हो साकते हैं, नास्तिक हो सकते हैं, शाकाहारी हो सकते हैं, मांसाहारी हो सकते हैं, सर्वाहारी हो सकते हैं. आप की पूजा पद्धति कुछ भी हो सकती है या नहीं भी हो सकती. यह सुविधा दुनिया के किसी भी दूसरे धर्म रिलीजन मजहब में नहीं मिलती. इसी लिये धर्म की परिभाषा रिलीजन और मजहब से परे होती है. रिलीजन या मजहब का समानार्थी शब्द सम्प्रदाय हो सकता है धर्म नहीं. क्योंकि धर्म शाश्वत होता है, संप्रदाय की तरह किसी एक पुस्तक, एक भगवान, एक पूजा पद्धति से बंधी नहीं होती.
जाति पर चर्चा करने से पहले धर्म की चर्चा करना क्षेपक नहीं था, सोद्देश्य है. किसी भी गिनती के लिये उस किस की परिभाषा जरुरी होती है. जाति की परिभाषा क्या है ?
जाति जन्मना तो बाद में होने लगी पहले यह कर्मणा ही थी. तो भारत की जनगणना में जन्मना वाली जाति मानी जायेगी या कर्मणा वाली. माँ की जाति संतानों की जाति मानी जायेगी या पिता की ? गणना से पहले इस प्रश्न का सर्वमान्य उत्तर परिभाषित करना अति आवश्यक है. यहां मैं उदाहरण के लिये लोकसभा मे नेता प्रतिपक्ष का उदाहरण लेना चाहता हूं. राहुल गाँधी जाति गणना की जितनी वकालत करना चाहें, करे. पर पहले अपनी जाति का निर्धारण तो कर लें. वे अपने को हिन्दू घोषित कर सकते हैं, हों या नहीं यह प्रश्न नहीं उठेगा पर अगर वे अपने आप को जनेऊधारी ब्राह्मण कहें तो हजार सवाल उठेंगे. वे ब्राह्मण कैसे हुये ? क्या कोई भी अपने आप कि किसी भी जाति विशेष का घोषित कर सकता है ? अगर हाँ तो फिर जाति गणना की सारी कवायद बेकार हो जायेगी. राहुल जैसे लोगों की जाति क्या होगी ? और अगर उनकी कोई जाति नहीं होगी तो उनको किस वर्ग में रखा जायेगा ? जाति सिर्फ हिन्दुओं की गिनी जायेगी कि मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध, सिक्खों की भी ? शायद जैन, बौद्ध, सिक्खों में भी जाति नहीं होती. पर उन मुसलमानों और ईसाईयों का क्या होगा जो जातिगत आरक्षण का लाभ तो उठाते हैं पर अपने कि मुसलमान या ईसाई भी मानते हैँ. क्या इस्लाम और ईसाईयत में भी जाति प्रथा मौजूद मानी जायेगी ? अगर हाँ तो क्यों ? अगर नहीं तो उनको जातिगत आरक्षण लाभ किस आधार पर दिया जायेगा ?
और बताया जाता है कि पिछली बार जब जाति गणना का प्रयास किया गया था तो देश में चालीस लाख से ज्यादा जातियां मिल गईं थीं जिनको वर्गीकृत करना सहज या संभव ही नहीं था. इसी कारण उस गणना को प्रकाशित नहीं किया गया. इसलिये मैं तो बस यही जानना चाहता हूं कि जाति की परिभाषा क्या होगी ? जन्मना तो मैँ क्षत्रिय हूं पर कर्मणा वैश्य शुद्र ब्राह्मण सब हूं. व्यापार करता हूं सो वैश्य हूं, नौकरी करता था तो शुद्र भी था, चिकित्सा पेशा था तो ब्राह्मण था. पर राहुल जैसे लोगों की जाति क्या होगी, किस आधार पर मानी जायेगी इस प्रश्न का उत्तर खोज रहा हूं. क्या आप इस विषय में चर्चा कर के मेरी कुछ सहायता कर सकते हैं ?